हिन्दी दिवस विशेष
हिन्दी दिवस को लेकर थोड़ी मेरी अलग विचारधारा है ।ज्यादातर लोग आज इस भाषा के संकट पर चिंता व्यक्त कर रहे। लेकिन मेरा एसा मानना है कि भाषा कोई भी हो उसका विकास करने वाला मनुष्य ही होता है चुकी जिस भी चीज़ का विकास मनुष्य द्वारा होता है उसमें परिवर्तन सामन्य बात होता है।
हिन्दी का विकास एसा नहीं है कि एक ही बार में हो गया, इसका विकास कई काल खण्डों में हुआ है और आगे भी होता रहेगा , एसा भी हो सकता है कि संस्कृत की तरह बस किताबों तक ही सीमित रह जाए।
चुकी मनुष्य केवल एक ही भौगोलिक क्षेत्र मे नही रहता बल्कि अलग अलग भौगोलिक क्षेत्रों मे रहता है और वो वहां के वातावरण के प्रभाव मनुष्य के शारीरिक गठन के साथ-साथ उसके स्वभाव व ध्वनि पध्दति पर भी पड़ता है इसलिए विभिन्न क्षेत्रों मे बोली जाने वाली भाषा उच्चारण और शब्दावली मे अन्तर होता है।
इस तरह से हम कह सकते है भौगोलिक विभाजन के कारण स्थानीय भाषाएं और बोली उत्पन्न होती है इसलिए किसी भाषा को राष्ट्रीय भाषा या राज्य भाषा का संज्ञा देना मूर्खतापूर्ण कार्य है। एक बार इसकी कोशिश साल 1965 में तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के द्वारा की गई थी लेकिन भारत के दक्षिण के राज्यों में भारी विरोध शुरू हो गया।
एक बार पंडित जवाहर लाल नेहरू ने संविधान सभा में भाषण के दौरान कहा था "भाषा का निर्माण मनुष्य करते है, किंतु फिर वह भाषा भी उन मनुष्यों का तथा उनके समाज का निर्माण करती है। यह प्रश्न क्रिया और प्रतिक्रिया का है। यदि भाषा अशक्त है तो लोग भी अशक्त ही होंगे। यदि कोई भाषा निराली है तो उसे बोलने वालों के विचार और कार्य भी निराले होंगे।
(~Ayush Ranjan✍)
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